sindhu ghati sabhyata ka itihas(सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास)
sindhu ghati sabhyata ka itihas
(सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास)
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास (sindhu ghati sabhyata ka itihas) परिचय -:
सिंधु घाटी के सभ्यता का हड़प्पा पड़ा क्यों की इसका पता स्वप्रथम पाकिस्तान के
हड़प्पा नामक आधुनिक स्थान पर इनकी खोज की गई ।
में फैली हुई थी । आज वह भाग पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में फैला हुआ है ।
सिंधु घाटी की सभ्यता मिस्र की सभ्यता , मोसोपोटामिया की सभ्यता , भारत एवं
चीन की सभ्यता से भी उन्नत थी । भारत का इतिहास का प्रारम्भ सिंधु घाटी की
सभ्यता से माना जाता है। सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज सन 1921 में रायबहादुर
दया राम साहनी ने की थी।

sindhu ghati sabhyata ka itihas
विस्तार -:
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार त्रिभुजाकार आकार में फैला हुआ था ।
सिंधु घाटी की सभ्यता उत्तर में पंजाब के रोपड़े जिले से लेकर जो आज
पाकिस्तान में है , नर्मदा घाटी तक फैला हुआ था । पश्चिम में बलूचिस्तान
से लेकर जो आज पाकिस्तान का भाग है उत्तर पश्चिम में मेरठ तक फैला हुआ
था । सिंधु घाटी की सभ्यता में कुछ बड़े नगरों का उल्लेख किया गया है जो
इस प्रकार है । मोहनजोदडो , हड़प्पा , गडवारीवाला , धौलावीरा , राखीगढ़ी
एवं कलिबंगन । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहा और भी खोज की गई । सिंधु घाटी
सभ्यता में सबसे बड़ा नगर मोहनजोदडो है परंतु भारत में पाये पाये जाने वाला
सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी है । जिसकी खोज सूरज भान ने 1969 में की थी ।
सिंधु घाटी की सभ्यता का क्षेत्रफल 1,299,600 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है ।
तत्कालीन प्राचीन किसी भी सभ्यता मोसोपोटामिया , मिस्र की सभ्यता से बड़ा था
इतना ही नहीं तत्कालीन किसी भी सभ्ययता से बड़ा था ।
प्राचीन भारत का स्रोत जानने के लिए click here
sindhu ghati sabhyata ka itihas
नागरीय योजना -:
सिंधु घाटी की सभ्यता(sindhu ghati sabhyata ka itihas) में नागरीय योजना का
सबसे महत्वपूर्ण स्थान है ।उचे वर्ग और सामन्य लोगो के रहने के लिए अलग -अलग व्यवस्था थी ।
मोहनजोदडो और हड़प्पा जैसे नगरों में अपने अपने – अपने दुर्ग होते
थे ,जो नगर के कुछ ऊंचाई पर स्थित होते थे ,जहां संभवतः उचें वर्ग के लोग
रहा करते थे और नीचे की तरफ ईट से बने हुए नगर मिला है जिसमे अनुमान
लगाया जा सकता है कि यहाँ सामन्य लोग रहा करते होंगे । इन नगरों में अन्न
भंडारण की भी व्यवस्था थी जो कि यहाँ की प्रमुख व्यवस्था में से एक थी ।
इसके अलावे यहाँ के प्रत्येक घर में स्नान घर और आँगन होता था ।
सिंधु घाटी सभ्यता के घरों के दरवाजे एवं खिड़की सड़क की और न
खुल कर पीछे की और खुलते थे सिर्फ लोथल नगर के घर के दरवाजे सड़क
की और खुलते थे ।
sindhu ghati sabhyata ka itihas
कृषि -:
सिंधु घाटी की सभ्यता में तिल , मसूर , सरसों , जौ , गेहूं आदि का उत्पादन होता था ।
हड़प्पा सभ्यता का अधिकांश स्थान अर्द्धशुष्क होने के कारण यहाँ सिंचाई की आवश्यकता
पड़ती होगी । लोथल में चावल का साक्ष्य मिला है । सिंधु घाटी के सभ्यता के लोग कृषि के
साथ -साथ पशुपालन भी किया करते थे । बनमाली में मिट्टी से बने हल का प्रमाण मिला है ।
इस सभ्यता में घोड़े का साक्ष्य लगभग न के बराबर मिले है , यह सभ्यता अश्व केन्द्रित नहीं रही
होगी । सिंधु घाटी के लोगो ने ही सबसे पहले कपास की खेती प्रारम्भ की थी , ग्रीक के लोग
कपास को सिंडल कहाता था और इस सभ्यता को सिंडल सभ्यता कहते थे । मोसोपोटामिया
के लोग कपास को सिंधु कहते थे और यूनानी लोग सिंडल कहते थे ।
sindhu ghati sabhyata ka itihas
अर्थव्यवस्था -:
हड़प्पा सभ्यता में प्रशाशनीक कार्य व्यापारिक वर्ग द्वारा ही किया जाता था ।
सिंधु घाटी की सभ्यता (sindhu ghati sabhyata ka itihas)में धातु
मुद्रा का प्रचलन नहीं था यहाँ के लोग पत्थर , धातु , सीप शंख का व्यापार करते थे ।
यहाँ वस्तु विनिमय की प्रणाली मौजूद थी । अफ़्गनिस्तान में व्यापारिक वस्तियाँ स्थापित
कर मध्य एशिया से सुगमता पूर्वक व्यपार करता था । इस समय आंतरिक और बाहरी
दोनों प्रकार के व्यापार होते थे । इस सभयता का व्यापार वस्तु – विनिमय के द्वारा होता
था । मुद्रा का साक्ष्य नहीं मिला है , वे अपने समान को गाड़ी में लाद कर ले जाते थे और
बदले में धातु लेकर आते थे । ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि माप-तौल की इकाई 16
के अनुपात में रही होगी । हड़प्पा के लोग नापना भी जानते थे ।
धर्म -:
सिंधु घाटी के सभ्यता(sindhu ghati sabhyata ka itihas) के लोग वृक्षों एवं पशुओं
की पुजा करते थे । सिंधु घाटी की सभ्यता में एक चित्र को पशुपति नाथ महादेव की संज्ञा दी गई
है जिसके एक तरफ हाथी , एक तरफ बाघ , एक तरफ गैंडा और पीछे भैस का चित्र है और पैरों
के पास दो हिरणो का चित्र है । जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पुजा देवी मान कर
करते थे उसी प्रकार सिंधु घाटी के लोग पृथ्वी की पुजा करते थे ,पृथ्वी को उर्वरता
की देवी मानते थे । एक सिंघ वाला गेंडा और कूबड़ वाला सांड महत्वपूर्ण पशु था ।
सिंधु घाटी के सभ्यता बाले लोग कुबड बाले सांड का पुजा भी करते थे ।इस काल में
मंदिर के अवशेष नहीं मिले है । हड़प्पा सभ्यता की खुदाई में स्त्री के गर्व से पौधा
निकलता हुआ दिखाया गया है , संभव है पृथ्वी देवी को दर्शाया गया है । इस सभयता
में मातृ देवी का एक महत्वपूर्ण स्थान था । दुर्गा , अम्बा , काली, चंडी मातृ देवी एवं वृक्ष
की भी आराधना की जाती थी । सिंधु घाटी के सभ्यता के लोग भूत – प्रेत आदि पर विश्वास
करते थे ऐसा इसीलिए कहा जाता है की हड़प्पा की खुदाई में तावीज मिले है । जिसे यहाँ
के लोग भूत – प्रेत या बुरी नजर से बचने के लिए पहनते थे ।
हड़प्पा की लिपि – हड़प्पा सभ्यता के लोग लिखने की पद्धति को वीकसीत कर चुके थे
हड़प्पा के लिपि प्रथम पंक्ति में दायें से बाएँ एवं दूसरे पंक्ति में बाएँ से दायें लिखी गई है ।
इनके लिखने की पद्धति को ब्रूस्त्रोफेदम कहा जाता है । परंतु इसे पढने में असफलता ही
हाथ लगी है । इनकी लिपि चित्रात्मक है । इनके लिपि को वर्णातमक नहीं कहा जा सकता ।
इनके लिपि को जब तक नहीं पढ़ा जा सकता तब तक इनके साहित्य के योगदान को नहीं समझा
जा सकता है ।
सिंधु घाटी की सभ्यता(sindhu ghati sabhyata ka itihas) के पतन का प्रमुख कारण -:
सिंधु घाटी के सभ्यता का पतन आज से लगभग 1800 ईशा पूर्व हो गया था ।
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कई सिद्धान्त है जिसमे एक सिद्धान्त यह कहता
है की आर्यों के आक्रमण के कारण यह सभ्यता नष्ट हो गई परंतु एक दूसरा
सिद्धान्त इसका पतन का कारण प्राकृत को मानते है । एक कारण यह भी हो
सकता है कि नदियों का अपने मार्ग में बदलाव जिस से कि बाढ़ आ गई हो
खाद उत्पादन क्षेत्र ना बचा हो । एक मान्यता तो यह कहती है की सिंधु घाटी
सभ्यता में वर्षा की मात्रा कम हो गई जिस से कृषि कार्य और पशु पालन में समस्या
होने लगी । रेगिस्तान भू- भाग बढ्ने से जमीन में नमक की मात्रा बढने लगी जिस
से कृषि योग्य भूमि नष्ट हो गई । एक दूसरे मान्यता के अनुसार भूकंप आने से जमीन
ऊंचे नीची हो गई और इसमे बाढ़ का पानी जमने से इस सभ्यता का अंत हो गया ।
कुछ लोग यह भी मानते है की भूकंप के कारण सिंधु नदी का रास्ता बदल गया जिसके
कारण सिंधु घाटी के सभ्यता का पतन हो गया है ।