समास किसे कहते है समास के भेद और समास से शब्द निर्माण
समास किसे कहते है समास के भेद और समास से शब्द निर्माण
प्रश्न – समास किसे कहते है समास के भेद और समास से शब्द निर्माण कीजिए

दो या दो से अधिक शब्दों मिलने से नए शब्द की रचना करता है जिसे समास कहते है ,
और इस विधि से बनने बाले शब्द समस्त पद कहते है , एवं इन समस्त पदों को अलग –
अलग किया जाए तो इसे समास विग्रह कहतें है ।
समस्त पद के पहला शब्द पूर्व पद एवं दूसरा पद उत्तर पद कहा जाता है ।
उदाहरण के लिए :-
पूर्वपद | उतरपद | समास |
डाक | घर | डाकघर |
दवा | खाना | दवाखाना |
भय | भीत | भयभीत |
रसोई | घर | रसोईघर |
जब समस्त पद को अलग – अलग किया जाता है , तो इस प्रक्रिया को समासविग्रह कहते है ।
विशेषण के बारे में विस्तार से जानने के लिए CLICK HERE
समास के भेद
तत्पुरुष समास :- जिस समास में प्रथम पद प्रधान एवं दूसरा पद गौण होता है उसे
तत्पुरुष समास कहते है ।
तत्पुरुष समास के पहचानने के कुछ नियम :-
* तत्पुरुष समास के संज्ञा के साथ संज्ञा पद अथवा क्रिया पद का योग होता है जैसे :-
पाठ ( संज्ञा ) शाला (संज्ञा ) = पाठशाला , देश (संज्ञा ) निकाला (क्रिया) = देशनिकाला
विभक्ति का लोप हो जाता है ।
* परंतु संस्कृत के कुछ शब्दो में विभक्ति का लोप नहीं होता है ।
तत्पुरुष समस के कई भेद किए जा सकते है ।
कर्म तत्पुरुष समास किसे कहते है ?
(i) कर्म तत्पुरुष समास – जहां पूर्व पद में कर्म कारक ( को ) का लोप हो
जाता है वहाँ कर्म तत्पुरुष समास होता है । जैसे :-
समस्त पद | विग्रह |
सर्वप्रिय | सब को प्रिय |
परलोकगमन | परलोक को गमन |
ग्रामगत | ग्राम को गया हुआ |
स्वर्गीय |
करण तत्पुरुष समास किसे कहते है ?
(ii) करण तत्पुरुष :- जहां पूर्व पद में करण कारक की विभक्ति (से , द्वारा ) का लोप हो
जाता है । जैसे :-
समस्त पद | विग्रह |
भूखमरा | भूख से मरा |
मदमस्त | मद से मस्त |
भयाकुल | भय से आकुल |
प्रेमातुर | प्रेम से आतुर |
संप्रदान तत्पुरुष –
इस कारक के पूर्व पद में सम्प्रदान कारक (के लिए ) लोप हो जाता है। जैसे -:
समस्त पद | विग्रह |
हथकडी | हाथ के लिए कड़ी |
छत्रावास | छात्रों के लिए आवास |
तपोवन | तप के लिए वन |
देशभक्ति | देश के लिए भक्ति |
अपादान तत्पुरुष -:
जहाँ पूर्व पद में अपादान कारक (से अलग ) विभक्ति का लोप हो अपादान कारक कहलाता है -:
समस्त पद | विग्रह |
पापमुक्त | पाप से मुक्त |
बंधनमुक्त | बंधन से मुक्त |
गुणहीन | गुण से हीन |
पदमुक्त | पद से मुक्त |
संबंध तत्पुरुष -:
समस्त पद | विग्रह |
मंत्री – भवन | मंत्री का भवन |
रामभक्ति | राम की भक्ति |
सीमारेखा | सिमा की रेखा |
मृत्युदंड | मृत्यु का दंड |
अधिकरण कारक -:
समस्त पद | विग्रह |
सिरदर्द | सिर मे दर्द |
देशाटन | देश मे अटन |
भूमिगत | भूमि मे गत |
पेटदर्द | पेट मे दर्द |
नञ समास –
समस्त पद | विग्रह |
अमर | न मर |
अजर | न जर |
निडर | न डर |
अधर्म | न धर्म |
कर्मधारय समास –
कर्मधारय समास मे पहला पद विशेषण या उपमय एवं दूसरा पद विशेष्य
या उपमान होता है कर्मधारय समास कहलाता है ।
समस्त पद | विग्रह |
नीलकंठ | नीला है जो जो कंठ |
चन्द्रमुख | चन्द्रमा के समान मुख |
महात्मा | महान है जो आत्मा |
कमलनयन | कमल के सामान नयन |
द्विगु समास -:
जिस समास में पहला पद संख्या वाचक विशेषण होता है , उसे द्विगु समास कहते है ।
समस्त पद | विग्रह |
त्रिलोक | त्रि (तीन ) लोको का समूह |
शताब्दी | सौ वर्षो का समूह |
सप्ताह | साथ दिनों का समूह |
नवरत्न | नव रत्न का समूह |
समस्त पद | विग्रह |
महात्मा | महान जिसकी आत्मा |
तपोधन | तप ही है जिसका धन |
पीतांबर | पीला है जिसका अंबर |
एकदंत | एक दांत है जिसका अर्थात गणेश |
द्वन्दु समास किसे कहते है ?
(3) द्वन्दु समास -:
समस्त पद | विग्रह |
माता -पिता | माता और पिता |
भात -दाल | भात और दाल |
रात -दिन | रात और दिन |
भाई -बहन | भाई और बहन |
(4) अव्ययीभाव समास -:
जिस समास में पहला पद अव्यय हो अव्ययीभाव समास कहते है।
अव्ययीभाव समास के दो पदों में पहला पद अव्यय होता है , दूसरा पद मिल जाने के बाद भी
समस्त पद अव्यय ही रहता है ।
समस्त पद | विग्रह |
आजीवन | जीवन भर |
भरपेट | पेटभर के |
बेकाम | बिना काम के |
आमरण | मरण तक |
द्विगु समास और बहुव्रीहि समास में क्या अंतर –:
द्विगु समास में पहला पद संख्या वाचक विशेषण होता है एवं दूसरे पद के संख्या को
बताता है । बहुव्रीहि समास में पहला पद संख्या वाचक तो होता है परन्तु संख्या का
सुचना नहीं देता बल्कि तीसरे पद की ओर संकेत करता है ।
उदाहरण -:
तिरंगा — तीन रंगो का समूह । (द्विगु समास )
तिरंगा — तीन रंग है जिसमे । ( बहुव्रीहि समास)
त्रिलोचन – तीन लोचनों का समूह । ( द्विगु समास )
त्रिलोचन — तीन है लोचन जिसके अर्थात शिव ( बहुव्रीहि समास)
चतुर्भुज — चार भुजाओं का समूह ( द्विगु समास )
चतुर्भुज — चार भुजाएँ है जिसका अर्थात विष्णु । ( बहुव्रीहि समास)
कर्मधारय समास और बहुव्रीहि समास में अंतर -:
कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण या उपमेय और दूसरा पद विशेष्य या उपमान
होता है किन्तु बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता
है , और दोनों पदो के अर्थो से अलग – अलग अर्थ प्रकट होता है ।
दशानन – दस आनन ( कर्मधारय समास )
दशानन – दस मुख है जिसके अर्थात रावण । (बहुव्रीहि समास)
चंद्रमुख – चन्द्र जैसा मुख ( कर्मधारय समास )
चंद्रमुख – चन्द्र के समान है मुख जिसका (बहुव्रीहि समास)
महात्मा – महान है जो आत्मा ( कर्मधारय समास )
महात्मा- महान है जिसकी आत्मा (बहुव्रीहि समास)
लंबोदर – लंबा है जो उदर ( कर्मधारय समास )
लंबोदर – लंबा है उदर जिसका (बहुव्रीहि समास)
कर्मधारय समास और द्विगु समास में अंतर -:
कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण या उपमेय और दूसरा पद विशेष्य या उपमान
होता है किन्तु द्विगु समास में पहला पद संख्या वाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य
होता है ।
समास और संधि में अंतर -:
संधि में दो वर्ण होती है । संधि में पहले की अंतिम ध्वनि और दूसरे की अंतिम ध्वनि
में मेल होती है जिस से इसकी ध्वनि बदल जाती है
देव + आलय = देवालय
हिम + आलय = हिमालय