वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण (vrn vichar paribhasha)

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण (vrn vichar paribhasha)

प्रश्न –  वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण  कीजिये  । 

 प्रश्न – वर्ण किसे कहते है ?

उत्तर – मनुष्य के मुख से जो  उच्चारण ध्वनियों के रूप में निकलते है और उसे लिखा जा सकता है उसे वर्ण कहते है।

अतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि -:

* मुख से निकलने वाली ध्वनि जिसे लिखा जा सके वर्ण है।

* वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है।

* मुख से निकलने वाली वैसी ध्वनियाँ जिसे और टुकड़े नहीं किये जा सकते

* शब्द वर्णो के मेल  के  कहते है।

* वर्ण का एक और नाम अक्षर है।

* प्रत्येक भाषा में अपना वर्णो  की संख्या अलग -अलग  होती है।

* वर्णो के कुछ उदहारण ये है – क , ज , प , स ई ,उ  अदि

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण (vrn vichar paribhasha)
वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण (vrn vichar paribhasha)

प्रश्न- वर्णमाला किसे कहते है ? 

उत्तर-  वर्णमाला दो शब्दो से मिल कर बना है वर्ण और माला  अर्थात वर्णो की माला ,
किसी भी भाषा में जितनी वर्णो का प्रयोग किया है उन सब मिला वर्णमाला कहा जाता है।
   वर्णो को कर्म  अनुसार इस प्रकार सजाया जाय जिस से कुछ  सार्थक अर्थ निकले वर्णमाला कहलाती है। 
वर्ण विचार-परिभाषा उसका भेद । 
उच्चारण के दृश्टिकोण  से हिंदी के वर्णमाला के वर्णो को दो भागो में बात गया है। 
   (१) स्वर वर्ण(VOWEL ) (२) व्यंजन वर्ण (CONSONANTS  )

(१ ) स्वर वर्ण –

 जिस  वर्ण का उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण के  सहायता से किया जाता है  एवं 

और इसका उच्चारण  करते समय मुख से हवा बिना किसी रुकावट से निकल जाती है   

उसे स्वर वर्ण कहते है। 

वर्ण विचार-परिभाषा उसका

हिंदी में स्वर वर्णो की कुल संख्या 11 है , जो निम्न है –

स्वर –  अ , आ , इ , ई , उ ,ऋ , ऊ , ए , ऐ  , ओ , औ   ——————    (कुल संख्या  11 )

स्वरों को उच्चारण के दृस्टि से  मुख्यतः तीन  भागो में बाटा  जा सकता है।

(1 ) ह्रस्व स्वर (२)दीर्घ स्वर (3 ) प्लुत  स्वर 

(1)  ह्रस्व स्वर—-ह्रस्व स्वर को मूल स्वर भी कहा जाता है  इस स्वर के   उच्चारण में  बहुत ही

काम समय लगता है , उसे  ह्रस्व  स्वर कहा जाता है।  उदाहरण — ह्रस्व स्वर की संख्या चार 

है —अ , इ , उ , ऋ 

(2 ) दीर्घ स्वर —  जिन  स्वरों का उच्चारण ह्रस्व स्वरों की तुलना  में दो गुना समय लगता है ,

उसे दीर्घ स्वर कहते है , जैसे – इसकी संख्या मात्र सात है –  आ , ई , ऊ  , ए , ऐ  , ओ ,  औ ,

(3)  प्लुत स्वर–  प्लुत  की उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है  मुख्यतः संस्कृत

में  किया जाता है  उदहारण – ओउम  

कारक के बारे में जानने के लिए CLICK HERE 


वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण (vrn vichar paribhasha)

*अनुस्वार  (ं)जिसका उच्चारण नाक से किया  जाता है उसे अनुस्वार कहते है , 

इस चिन्ह  प्रयोग  ऊपर बिंदु के रूप में लगाया जाता है जाता है।  जैसे – संतरा ,

बंदर , अंदर , पंत , कंश  अदि। 

* अनुनासिक (ँ ) –  अनुनासिक के उच्चारण  के समय मुख और नाक  दोनों से  हवा

दबाब के साथ बहार निकलती है , 

 उ ,  ऊ  और  ऋ का प्रयोग —
 “र ” के साथ  उ और ऊ का प्रयोग के समय संसय उत्त्पन्न  है   ध्यान रखना चाहिए 

र् +उ = रु     रुक   ,  रुपया  ,              र् +ऊ = रू          रूमाल 

ऋ का उच्चारण   “रि”   की तरह होती है , यह एक स्वर है ,  इसकी मात्रा व्यंजन के पैरों   

लगती है। उदाहरण – वृत्त , घृणा , कृपया  कृत्य  अदि।      

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण 
स्वरों की मात्राएँ 

 

 स्वर
        मात्रा
उदाहरण
 स्वतंत्र प्रयोग
 आ
       ——-
जल , तब
अज , अमीर
 आ
           ा
मामा , चाचा , काम
आम , आप
 इ
          ि
दिन , पिता
इच्छा , इस
 ई
          ी
दीन , पीन
ईख , ईमान
 उ
          ु                        
सुख , पुण्य
उसका , उमंग
 ऊ
           ू
बूढ़ा ,लूट
ऊँचा ,ऊपर
           े
 खेल , देव
एवं , एक
          ै
 कैसा , पैसा
 ऐनक
          ो
मोहन , जोकर
 ओर , मोन
 औ
          ौ
  बौना , ,मौजा
 औरत , औखल

वर्ण विचार-परिभाषा उसका भेद ।

प्रश्न -व्यंजन  किसे कहते है ?

उत्तर – व्यंजन वैसा वर्ण है जिसका  उच्चारण करते समय स्वर के  सहायता से होता है

और जिसके उच्चारण   करने से  मुँह से  वायु रूकावट  के के साथ या घर्षण के साथ मुँह

से बहार  निकलती है।    हिंदी  में  व्यंजन वर्ण मूलतः 33 है। व्यंजनों  में कुल 6 विकसित

व्यंजनों जोड़ा  गया है। जिसके उपरांत इसकी संख्या 39 हो गई है।

 

क वर्ग   क् ,  ख् , ग् , घ् , ङ् ,

च  वर्ग–   च् , छ् , ज् ,  झ्  , ञ् ,

ट  वर्ग–    ट् ,  ठ् , ड , ढ् , ण्

त  वर्ग–      त् , थ्   द् , घ् , न्

प  वर्ग    प् , फ् , ब् , भ् , म्

अन्तः स्था — य् , र् , ल्  व् ,

ऊष्म –     स् , श्  ष , ह्

संयुक्ताक्षर – क्ष  ,त्र  , ज्ञ , श्र

अन्य –    ड़  , ढ़

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण

उच्चारण के आधार  पर  व्यंजन के मुख्यता तीन भेद है।

 

(१) स्पर्श व्यंजन    (२) अन्तः स्थ व्यंजन   (३)ऊष्म व्यंजन

स्पर्श व्यंजन – जिस व्यंजन   का  समय वायु कंठ से निकल कर मुख के किसी भाग

स्पर्श करते हुए बाहर निकल जाती हैं , स्पर्श  कहलाती है।

हम  प्रकार देख सकते है।-:

 वर्ग  स्पर्श व्यंजन उच्चारण स्थल
 क  वर्ग –

च वर्ग

ट वर्ग

त वर्ग

प वर्ग

 क , ख , ग ,घ ,ङ

च ,छ , ज , झ, ञ

ट  ,ठ , ड , ढ़ , ण

त ,थ , द , ध , न

प , फ ,ब , भ , म

कंठ

तालु

मूर्धा

दंत

ओष्ठ

 

अन्तस्थ व्यंजन –

जिस व्यंजन के  जिह्वा मुख के किसी के भाग को नहीं  छूती  उसे अन्तस्थ व्यंजन  कहते है।  जैसे – य ,र , ल ,   व

 उष्म व्यंजन –

इस प्रकार  के व्यंजन  उच्चारण करते समय  मुख  भाग से रगड़ खा कर बाहर निकलती हुई

ऊष्मा  उत्पन्न करती है उसे उष्म व्यंजन  कहते है।  जैसे – स ,श , ष , ह।

इसके अलावे व्यंजन  के कुछ अन्य प्रकार भी होते है जो  निम्न है।

* संयुक्त व्यंजन –एक से अधिक व्यंजनों   के मेल से  बनने बाले व्यंजन को सयुंक्त

व्यंजन कहते है।  हिंदी वर्णमाला में  चार  सयुंक्त व्यंजन है   – क्ष  ,त्र , ज्ञ , श्र
क्ष =क् +ष  ——कक्षा , पक्ष

*द्वित्व व्यंजन – जब स्वर रहित व्यंजन का मेल किसी समान स्वर  सहित व्यंजन से  होता

हो तो उसे  द्वित्व  व्यंजन कहते है।
जैसे – च्  +च =च्च ——— बच्चा , सच्चा

 *सयुंक्ताक्षर – जब स्वर रहित व्यंजन का मेल  किसी दूसरे स्वर  सहित  व्यंजन  से होता है

तो उसे सयुंक्ताक्षर                             है।

उदाहरण –  क्  + य =क्य —–  वाक्य  ,    शाक्य
क्  + त = क्त —–भक्त   ,    रक्त
न्   + य = न्य —–न्याय ,       अन्य

मुँह के जिस  भाग से जिस  वर्ण का उच्चारण किया जाता है , उसे उसका उच्चारण स्थल कहा  जाता है।

इसीको हम  निम्नलिखित समझ सकते है ,

नासिक्य                       (नाक )                                           अं  ,ङ् , ञ् , न् , ण्  , म्

कंठ्य                          (गले से )                                        अ , आ , अः , क , ख , ग ,घ ,ङ  ह

तालव्य                        (तालु से )                                        इ , ई , च ,छ , ज , झ, ञ  य , श

मूर्धन्य                        (मूर्धन्य से )                                        ऋ ट  ,ठ , ड , ढ़ , ण   ड़  , ढ़  र ,ष

दन्त्य                          ( दांतो से )                                         त ,थ , द , ध , न  ल , स , ज़

ओष्ठ्य                      (दोनों  होठो से )                                  उ  ,ऊ ,  प , फ ,ब , भ , म

दन्तोष्ठ्य                    (निचले होठ और ऊपर  दांतो से )           व , फ़

वर्त्य                         (दंत मूल से )                                          स  , ज़  र   , ल

कंठ-तालव्य             (कंठ और तालु से )                                 ए , ऐ

कण्ठोष्टय                  (गले होठ से )                                        ओ ,  औ

स्वर तंत्रियों  के कंपन के  आधार पर वर्णो को दो  भागो में बाटा  गया है। 

 (1 )अघोष वर्ण  (2 )सघोष वर्ण

*अघोष वर्ण —

जिन वर्णो के  उच्चारण करने से स्वर तंत्रिका में कंपन  नहीं  होता है , उसे अघोष
वर्ण कहते है। अघोष वर्ण निम्नलिखित है।
क , ख , च , छ , ट ,ठ ,त , थ , द ,प , फ  ,स , श ,ष

सघोष वर्ण —

जिस वर्णो  के  उच्चारण  से स्वर तंत्रिकाओं  में कम्पन उत्पन्न होती है उसे सघोष  कहते है  उदाहरण निम्न है –
 ग ,घ ,ङ   , ज , झ, ञ   , ड , ढ़ , ण  , द , ध , न
,ब , भ , म  (सभी वर्ण  सघोष  है )

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण (vrn vichar paribhasha)

उच्चारण में लगे प्रयत्न के दृस्टि व्यंजनों को दो भागो  बाटा गया है –:

(1)  अल्प प्राण  व्यंजन (2) महा प्राण व्यंजन

(1) अल्प प्राण  व्यंजन —

जिन  वर्णो  का उच्चारण  करते  समय मुख से कम वायु निकलती है उसे अल्प प्राण
व्यंजन   कहते है। उदाहरण निम्न है।
क , ग , ङ ,च  , ज  ञ  , ट , ड ,ण , त ,द  ,न  , प  , ब  , म  ,य , र , ल ,व

महाप्राण  व्यंजन —

जिस व्यंजनों  के उच्चारण करते समय मुख  से हवा ज्यादा  है ,उसे महाप्राण व्यंजन  कहते है ,उदाहरण  निम्न है –

ख , घ , छ , झ , ठ , ढ , थ , ध , फ ,भ , श , ष , स , ह।

अयोगवाह  किसे कहते है ?

अं  ,और  अः  स्वर और व्यंजन का मिला  जुला रूप है जिसे अयोगवाह कहा जाता है।

यदपि परम्परागत वर्णमाला  में इसे स्वरों   में गिना जाता है। , परन्तु उच्चारण  दृस्टि से व्यंजन

है। अं   को अनुस्वार अः को विसर्ग कहा जाता है। ये हमेशा स्वर आता है।  ये अं (ां ) एवं

अः (ाः ) के रूप में जुड़े  रहते  है।अनुस्वर जिस  स्पर्श व्यंजन से पहले आता  है ,  व्यंजन

वर्ग  अंतिम नासिक वर्ण के रूप में प्रयोग किया जाता जाता है।

जैसे – पंगा , पंकज  में ङ्

डंडा , झंडा में   ण्

होता है। जैसा -ऑफिस कॉलेज , डॉक्टर  अदि

वर्ण विचार-परिभाषा उसका विश्लेषण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *