मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है
मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है
प्रश्न –मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है
उत्तर – मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है इसके लिए मौर्य काल को
समझना होगा मोर्य साम्राज्य को इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। मौर्य वंश का विस्तार भारत के बहुत बड़े क्षेत्र में था।
मौर्य वंश का विस्तार उन क्षेत्रों में भी था जहां अंग्रेजों का शासन भी कभी ना हो सका था।भारत के इतिहास में मौर्य
साम्राज्य को इतिहास में हम मौर्य काल के आधार पर विभाजित कर पढ़ते हैं । इसलिए मौर्य साम्राज्य को
भारतीय इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है।
मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है
मौर्य साम्राज्य की स्थापना – मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त ने की थी । ब्राह्मण परंपरा के अनुसार चंद्रगुप्त
चंद्रगुप्त की माता मूरा छोटी जाति की स्त्री थी , जो नन्द राजाओं के रानीवास मे रहती थी । बोद्ध परंपरा के अनुसार
नेपाल के पास गौरखपुर में एक क्षत्रिय कुल के लोग रहते थे हो सकता है कि चन्द्रगुप्त इसी वंश के हो ।
नंद वंश का अंतिम राजा का घनानन्द का प्रभाव का होता जा रहा था , एवं उसकी दुष्टता के कारण
उसकी बदनामी भी होती जा रही थी । बिष्णु गुप्त जिसे चाणक्य और कौटिल्य भी कहते है । कौटिल्य
उसने मौर्य साम्राज्य को भारत के इतिहास का मिल का पत्थर बनाने में बहुत बड़ा योगदान है , उन्होने
चन्द्रगुप्त के मदद से नंद वंश का तख़्ता पलट दिया और इस प्रकार हुई मौर्य साम्राज्य कि स्थापना ।
चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत को जीता पश्चिम में चन्द्रगुप्त ने पूर्वी अफ़गानिस्तान , बलूचिस्तान ,
पश्चिमी शिंधू पर अधिकार कर लिया , इसके अलावा मौर्य साम्राज्य सारा बिहार , उड़ीसा ,
बंगाल के अधिकांश भाग , उतर उत्तर पश्चिम भारत एवं दक्कन के कुछ भाग सामील हो गए थे ।
पश्चिमी उत्तर भारत को चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस से आजाद करवाया था ।

मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है
चंद्रगुप्त का साम्राज्य विस्तार- चंद्रगुप्त साम्राज्य का संपूर्ण विवरण मेगास्थनीज के इंडिका
और चाणक्य अर्थशास्त्र से प्राप्त होता है। मेगास्थनीज सेल्यूकस का राजदूत था । इंडिका
से मौर्य काल के प्रशशानिक , आर्थिक , सामाजिक आदि पर अच्छा प्रकाश पड़त
इन दोनों पुस्तकों के आधार पर मौर्य साम्राज्य पर प्रकाश डाला जा सकता है ।
राजा ही राज्य का सर्वोपरि हुआ करता था । उनका राज्य कई प्रांतों में विभक्त हुआ करता था।
प्रत्येक प्रांत का का प्रमुख राजवंश का ही राजकुमार हुआ करता था ।प्रांतों को भी कई भागों में
विभाजित किया गया था । पाटलिपुत्र मौर्य साम्राज्य का राजधानी हुआ करता था, इसके अलावा
तक्षशिला , कौशांबी , उज्जैनी इसकी प्रमुख नगर थे। चंद्रगुप्त बहुत ही विशाल थी। प्लीनी नामक
इतिहासकार के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 600000 पैदल सिपाही , 30,000 घुड़सवार, 900
हाथी सैनिक होते थे और 8000 रथ थे । चाणक्य अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्य राजाओं ने कृषि क्षेत्र में
कई कार्य किए वह परती जमीन को तोड़कर कृषि योग्य भूमि बनाएं एवं वह बताए गए किसानों से
कर लेते थे और उन्होंने कृषि के लिए सिंचाई की व्यवस्था कर रखी थी वे किसानों से चौथे हिस्से से
छठे हिस्से तक कर के रूप में लेते थे। किसानों से सिंचाई कर भी वसूल करते थे।
बिंदुसार- (298 – 272 ईसा पूर्व) – मौर्य साम्राज्य को इतिहास में बिन्दुसार का स्थान महत्वपूर्ण है ।
मात्र 22 साल की उम्र में राज्यअभिषेक हो गया वो चंद्रगुप्त के के पुत्र और उतराधिकारी थे । बिन्दुसार
पश्चिम के यूनानी राजा के साथ अच्छे संबंध थे ।
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अशोक —मौर्य साम्राज्य को इतिहास में अशोक का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है ।
अशोक मौर्य साम्राज्य का सबसे महान राजा था। सम्राट अशोक को देवनाप्रिय कहा
जाता है , इसका अर्थ होता है देवो का प्रिय , ऐसी उपाधि भारत के किसी और राजा को नहीं
दिया गया है । ऐसा माना जाता है कि अशोक पहले बहुत ही क्रूर राजा था । कलिंग
युद्ध के पश्चात उनका हृदय परिवर्तन हुआ । अशोक का इतिहास उनके अभिलेखों
के आधार पर किया जा सकता है । अभिलेखों के सहारे प्रजा से सीधा संवाद करने वाले अशोक
भारत में पहले राजा । उनका अभिलेख भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ अफगानिस्तान में पाए गए हैं।
अभिलेख पुरानी राष्ट्रीय मार्ग किनारे पाए जाते हैं। अभिलेखो में सम्राट के आदेशों को लिखा जाता था ।
अभिलेखो में प्राकृत भाषा और ब्रह्मलीपी में लिखा हुआ है । पश्चिमोत्तर भारत में खरोष्टी और अरमाईक
लिपि में लिखा है । अफगानिस्तान में आरामाईक एवं यूनानी लिपि दोना में है ।
सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में एक मात्र युद्ध किया वो था कलिंग युद्ध इस युद्ध में हुए हिंसा
को देखने के बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ और पूरे जीवन युद्ध न करने का प्रण किया । उस युद्ध
में 100,000 लोग मारे गए थे । अपने नीति में बदलाव किया भौतिक विजय के स्थान पर संस्कृत विजय
पर बल दिया । इन सब बातों का उल्लेख 13वे शिलालेख में मिलता है । ऐसा नहीं लगता कि अशोक
कलिंग युद्ध के बाद नितांत शांति बादी बन गया होगा , ऐसा कोई प्रमाण तो नहीं मिलता कि चन्द्रगुप्त से
लेकर अंत तक मौर्य साम्राज्य के सेना को विघटित कर दिया गया हो । वो अपने जन जाति से कहा करते
थे कि धम्म का पालन करें अन्यथा बुरे परिणाम होंगे । उन्होने हिंसा मांसाहार को बंद करवा दिया था ।
(मौर्य साम्राज्य को इतिहास)
अशोक और बौद्ध धर्म – अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था । उन्होने बौद्ध धर्म
को अनेक दान भी दिये । सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के तीसरे सम्मेलन का आयोजन किया
था । उन्होने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए दक्षिण भारत , श्रीलंका , वर्मा आदि देश भेजा ताकि
बौद्ध को अधिक से अधिक लोग बौद्ध धर्म को अपना सके । उन्होने धम्ममहामात्र द्वारा
धर्म प्रचार वे अपने साम्राज्य में पशु बलिको पूर्ण रूप से बंद करवा दिया था ।
अशोक धर्म सभी धर्म का आदर करते थे । उन्होने लोगो को जियो और जीने दो का उपदेश दिया ।
सम्राट अशोक कि महत्ता – प्राचीन विश्व कि इतिहास में सम्राट अशोक को एक महान
धर्म प्रचारक के रूप में याद किया जाता है । सम्राट अशोक ने राजनीतिक एकता को
स्थापित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई । उन्होने राजनीतिक एकता , धर्मीक एकता ,
भाषीय एकता को स्थापित किया , उन्होने सम्पूर्ण राज्य में एक ही लिपि का
प्रयोग किया । सम्पूर्ण राज्य में ज़्यादातर ब्रह्मलीपी का प्रयोग किया ।
परंतु वे राज्य के एकता के लिए आरमाइक , खरोंष्ठी , यूनानी आदि सभी
लिपियों का सम्मान किया । उन्होने सभी धर्मो का आदर किया , उन्होने कभी
बौद्ध धर्म को अपनाने के लिए अपने प्रजा पर दबाब नहीं बनाया । अशोक की
नीति चाणक्य की नीति से बिल्कुल उलट थी । चाणक्य कहते थे कि राजा को
शक्ति द्वारा हमेशा विजय पाने कि चेष्टा करते रहना चाहिए । अशोक ने अपने
उतराधिकारी को भी आक्रमण ना करने कि सलाह दी । 232 ई० पू0 उनके शाशन काल
समाप्त होने के बाद उनका राज्य छोटे – छोटे राज्य में बट गया । सम्राट अशोक के
शशन काल के समाप्त होने के 30 वर्ष के अंदर ही पडोसियों ने उनके राज्य पर
आक्रमण कर दिया।
इस प्रकार हम समझ सकते है कि मौर्य साम्राज्य को इतिहास में मील का पत्थर क्यों कहा जाता है ।
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