(दिल्ली सल्तनत का इतिहास)DELHI SULTANAT IN INDIAN HISTORY

 (दिल्ली सल्तनत का इतिहास)DELHI SULTANAT IN INDIAN HISTORY

गुलाम वंश(1206 -1290) – गुलाम वंश का दिल्ली सल्तनत का भारतीय इतिहास में  सबसे महत्वपूर्ण समय काल रहा ।

मोहमद गोरी  ने भारत पर प्रथम आक्रमण मुल्तान में सन 1175 में किया था । सन 1178 ई ॰  में गुजरात के राजा भीम द्वितीय ने मोलहमद

गोरी को बुरी तरह से हराया था । तत्पश्चात सन 1191 ई॰ में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गोरी को हराया था । परंतु

तराइन के दूसरे युद्ध में मोहमद गोरी  ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था । इसके बाद गहड़वाल वंश के राजा जयचंद को मोहम्मद गोरी ने

चंदवार युद्ध में सन  1194 ई॰ को हरा दिया था । मोहम्मद गोरी ने जीते हुए भाग को अपने गुलाम  कुतुबुद्दीनऐबक को देकर खुद गजनी चला

गया था । इसप्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई ० में गुलाम वंश का स्थापना किया । कुतुबुद्दीन ने अपना राजधानी लाहोर को बनाया । उनका

पूरा शशनकाल  युद्ध करने में बिता । एक तरफ तो  राजपूतों  विरोध कर रहें थे । तो दूसरी तरफ बख्तियार खिलजी के मृत्यु के आलिमर्दान ने

अपने को स्वतंत्र  घोषित कर दिया था । कुतुबुद्दीन ने ही  “ढाई दिन का झोपड़ा ” और “काबेट – उल-इस्लाम -मस्जिद जो दिल्ली में है निर्माण

करवाया था । कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार  का निर्माण अपने गुरु कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के याद में करवाया  था । कुतुबुद्दीन की

मृत्यु सन 1210 ई ॰ चौगान खेलते समय घोड़े से गिरने पर इनकी मृत्यु हो गई थी ।

दिल्ली सल्तनत का इतिहास
दिल्ली सल्तनत का इतिहास

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आरामशाह –  दिल्ली सल्तनत के इतिहास में आरामशाह कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद शाशक  बना परंतु आरामशाह एक अयोग्य शाशक

सिद्ध हुए । इल्ल्तुमिश  ने आरामशाह की हत्या कर खुद शाशक बन गए । इसने 1210 में सिर्फ छ: माह ही शाशन कर सके थे । इल्ल्तुमिश ने

लाहोर से राजधानी दिल्ली ले कर आए थे ।

इल्लतुतमिश  (1210 -1236) -दिल्ली सल्तनत का इतिहासमें  इल्ल्तुमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम और दामाद था ।

कुतुबुद्दीन के अचानक मृत्यु होने से वे अपने उत्तराधिकारी का चयन नहीं कर पाये थे  बाद में  उनके अयोग्य पुत्र आरामशाह को गद्दी पर बेठाया ।

उस समय  इल्ल्तुमिश बदायु का सूबेदार था । दरवारी और नागरिकों के आमंत्रण मिलने पर वो दिल्ली के तरफ कूच किया , आरामशाह के साथ

युद्ध कर उसकी हत्या कर  दिया ।इन का सबसे प्रमुख विरोधी ताजुददिन यल्दोज और नासीरुद्दीन  कूवाचा थे । इल्ल्तुतमिश ने यल्दोज और कूबाचा

को पराजित कर दिया । चंगेज़ खान की पुत्री  के साथ जलालूद्दीन  मुगबर्नी का प्रेम प्रसंग था । जलालूद्दीन  मुगबर्नी ने भाग कर भारत के पास आ गया

परंतु मंगोल आक्रमण कारी ने इल्ल्तुमिश को मदद ना करने का संदेशा दिया , इल्लतुतमिश ने उसकी मदद नहीं की , इस प्रकार उसने मंगोल आक्रमण

से अपने को सुरक्षित कर लिया । बगदाद के खलीफा से सुल्तान की उपाधि पाने वाला प्रथम शाशक बना । इन होने सुल्तान की उपाधि सन 1229 ई ॰

मे मिला था । इल्लतुतमिश ने चाँदी और तांवे के सिक्के का प्रचलन करवाया  । चाँदी के सिक्के को टका और तांवे के सिक्के को जितल कहा जाता था ।

इल्लतुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक का अधूरा बना हुआ कुतुबमिनार को पूरा करवाया । बदायु का जामा मस्जिद का निर्माण भी इल्लतुतमिश ने

ही करवाया था । इल्लतुतमिश ने अपना उतराधिकारी अपनी बेटी रज़िया बेगम को बनाया क्योंकि उसका बड़ा बेटा 1229 ई॰ में  नसीरुद्दीन महमूद की

मृत्यु हो गई थी । इल्लतुतमिश की मृत्यु सन 1236 ई॰ में हो गई थी ।

रुकुनीद्दीन फिरोजशाह – दिल्ली सल्तनत का इतिहास में रुकुनीद्दीन फिरोजशाह इल्लतुतमिश के मृत्यु के बाद सुल्तान बना ।

रुकुनिद्दीन फिरोज़शाह एक अयाश व्यक्ति थे । कुछ महीना शाशन करने के बाद उनको गद्दी से हटा दिया गया । इसके बाद रजिया सुल्तान को शाशक बनाया गया ।

रजिया सुल्तान (12136 -1240)- दिल्ली सल्तनत का इतिहास में रजिया सुल्तान को इल्लतुतमिश ने ही उतराधिकारी घोषित कर गए थे ।  रजिया सुल्तान

मुस्लिम भारतीय इतिहास का पहली महिला शाशक थी । रजिया सुल्तान दरवार में पुरुष  के तरह कपड़े पहनती और रहती थी । रजिया सुल्तान ने

प्रदा प्रथा का पूर्ण त्याग कर दिया था , जो  उसके   दरवरियों को पसंद नहीं था । ऐसा कहा जाता है कि जमात-उद-दिन-याकूत के संग रजिया के प्रेम

प्रसंग थे जो मुसलमानों को  नामंज़ूर था । प्रांतीय गवर्नर को भी रज़िया का आधिपत्य स्वीकार नहीं था । भटिंडा का गवर्नर अल्तुनीय ने अन्य गवर्नर के साथ मीलकर

रजिया पर आक्रमण कर दिया । युद्ध पर याक़ूब मारा गया , मृत्यु के भय से  रजिया ने अल्तुनीय से विवाह करना स्वीकार किया । इधर रजिया सुल्तान के भाई

बेहराम शाह ने गद्दी पर कब्जा कर लिया । दोनों ने मिलकर बेरंम शाह पर आक्रमण कर दिया परंतु दोनों प्राजित हुए । बाद में दोनों को ही 1240 ई ॰ को

कैथल में  डाकुओं  द्वारा दोनों कि हत्या कर दी गई ।

बहराम शाह – दिल्ली सल्तनत का इतिहास में गुलाम वंश का एक अन्य शाशक बहराम शाह रजिया सुल्तान के बाद राजा बना सन 1241 ई ॰ में

मंगोल के आक्रमण में मारा गया था ।

अलाउद्दीन मसुदशाह  (1242-1246)- दिल्ली सल्तनत का इतिहास में  इसके के बाद में अलाउद्दीन मसुदशाह गुलाम वंश का

अगला शाशक बना । ये 1242 ई ॰ से 1246  ई ॰ तक शासन किया ।

गायासुद्दीन बलबन (1249 -1286)- दिल्ली सल्तनत का इतिहास में  गयासुद्दीन बलबन गुलाम वंश का नवां शाशक बना ।

  नसीरुद्दीन महमूद के बाद गायसुद्दीन बलवन  शाशक बना । इसका असली नाम बहाउदीबहौद्दीन था । ये गुलाम वंश के सबसे महत्वपूर्ण शाशक थे ।

इन्होने नसीरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनने में बहुत मदद की थी । गायसुद्दीन बलबन इल्लतुतमिश का गुलाम था । वे न्याय प्रिय शाशक था । नसीरुद्दीन

महमूद ने बलबन को अपना प्रधान मंत्री नियुक्त किया था । नसीरुद्दीन महमूद ने उसे उलुग खाँ की उपाधि दी थी । गायसुद्दीन बलबन ने ही चालीसा की

प्रथा को खतम कर दिया । बलबन ने सिजदा और पेवोश प्रथा को समाप्त किया । बलबन के चार पुत्र थे । चोरों पुत्रो का नाम इस प्रकार थे , सुल्तान महमूद ,

केकुबाद , कैखुसरो , कैकआऊस   ।  बलबन ने  जिले – ए- एलाही का उपाधि धरण किया ।

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                                                                        खिलजी  वंश(1290- 1320)

दिल्ली सल्तनत का इतिहास में

जलालूद्दीन खिलजी – दिल्ली सल्तनत का इतिहास में जलालूद्दीन खिलजी खिलजी वंश का  संस्थापक था । इसने गुलाम वंश का अंतिम

शाशक शम्सुद्दीन कैमुर्स की हत्या कर के खिलजी वंश की नीव राखी थी । इसने बाद में कैकूबाद  की भी हत्या कर दी थी । इसने छ: वर्ष तक शाशन किया ।

उसकी  हत्या उसके दामाद और भतीजा जूना खान ने कर दी  थी । जूना खान ही बाद में  अलाउदीन खिलजी ने नाम से बिख्यात हुआ ।

अलाउदीन खिलजी- दिल्ली सल्तनत का इतिहास में अलाउदीन खिलजी अपने चाचा और ससुर जलालूद्दीन खिलजी की हत्या कर गद्दी को

प्राप्त किया । इसने अपनी सैन्य अभियान  चालू किया इसने सन 1292 ई॰ में मालवा पर आक्रमण किया और खूब लूट पाट की । 1294 ई ॰ में  देवगिरि  पर 

आक्रमण किया वहा भी उसने जी भर कर लूट पाट किया । इसने अपने सेनापति मालिका फुर के साथ मिलकर दक्षिण भारत पर भी आक्रमण कर दिया था ।

उसने गुजरात , मालवार , चीतौड ,रणथंभभोर पर विजय  प्राप्त किया । इससे उसके खिलजी साम्राज्य  मजबूत हुआ ।इनके सुधारो में कर सुधार , बाजार सुधार

सबसे  अधिक महत्वपूर्ण है ।  अलाउदीन खिलजी ने कृषि करों में 20% से बढ़ कर 50%  तक बढ़ा दिया गया ।  उसका पूरा शाशन तलवार पर आधारित था ।

इसीलिए सेना पर खर्च करना जरूरी थी । वे सेना नकद बेतन देते थे , इसके लिए बाज़ार व्यवस्था  में बहुत सुधार किया गया । क्या बेचना है , कितने में बेचना है

इसका नियंत्रण शाशक करता था । सभी  जरूरी चिजों का दाम को नियंत्रण कर दिया गया था , कोई व्यापारी  नियंत्रित दाम से अधिक या वजन कम तौल  देने

पर कठोर दंड की भी व्यवस्था थी । जितना सामान कम तौल कर देता था , उस से दुगुना मांस का टुकड़ा उसके शरीर से काट लिए जाते थे , आधा तो  वहीं नाली

में फेक दिया जाता था  और आधा उसके घर भेज दिया जाता था , ताकि कोई और नियम तोड़ने से डरे ,  इस से  सैनिक कम पैसे से खरीदारी कर पाता था । सन

1316 ई॰ में अलाउद्दीन  खिलजी की मृत्यु हो गई , अलाउद्दीन खिलजी के मृत्यु के बाद उसका सेनापति मालिकफूर शाशक बनना चाहता था परन्तु

अफगान और फारस  के  आमीरों ने उसका साथ नहीं दिया । अलाउद्दीन के मृत्यु के बाद उसका पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह राजा बना परंतु खुसरो शाह के द्वारा

उसकी हत्या कर दी गई । खुसरो शाह की हत्या गाजी  मलिक ने किया ।  जो बाद में गयासुद्दीन  तुगलक कहलाया ।

                                                                 

खिलजी  वंश(1290- 1320)

  

दिल्ली सल्तनत का इतिहास में

गयासुद्दीन तुगलक(1320-1325)-  दिल्ली सल्तनत का इतिहास में गाजी मलिक जिसने खुसरो शाह की हत्या कर गद्दी पर कब्जा किया था , वही बाद

में अपना नाम  बदल कर गयासुद्दीन तुगलक कर दिया और तुगलक वंश की स्थापना की । गयासुद्दीन तुगलक  8 सितम्बर को राज गद्दी पर बैठा । गयासुद्दीन तुगलक

ने अलाउद्दीन खिलजी के कठोर नीति को हटा दिया । इसने कृषि कर भी  1/10 और  1/11  से  अधिक नहीं  लेने का फरमान जारी किया । इसने किसानो के सिंचाई

के लिए कुआं और नहरों का व्यवस्था करवाया , ये पहले ऐसे सुल्तान थे जिसने नहरों का निर्माण करवाया था । गयासुद्दीन तुगलक ने 1305 ई॰ में मंगोल को हराया था ।

इसने पाँच वर्ष तक शाशन किया  और दिल्ली के पास तुगलकाबाद शहर को बसाया ।  ये  अपने पुत्र जूना खान के द्वारा हत्या कर दिया गया ।  आगे चल कर जूना खान

अपना नाम मुहम्मद बिन तुगलक कर लिया था ।

दिल्ली सल्तनत का इतिहास में

मुहम्मद बिन तुगलक(1326-1351) –   मुहम्मद बिन तुगलक अपने पिता गायसुद्दीन तुगलक की हत्या कर गद्दी पाया था । मुहम्मद – बिन-तुगलक 

एक विद्वान राजा था । उसे कुरान , कहानी , कविताओं की अच्छी जानकारी थी । वे अपने दुश्मनों  को हल्के में नहीं लेता था । परंतु कुछ इतिहासकर  इसके कुछ काम के असफल

होने के कारण इसे पागल बादशाह की  उपाधि देता है । मुहम्मद – बिन – तुगलक सोने की सिक्के के स्थान तांवे के सिक्के का प्रचलन शुरू किया , उसकी योजना तो अच्छी थी पर

ठिक से  योजना ना बनाने के कारण कहा जाता है कि उस समय घर – घर में सिक्का ढाला जाने लगा था , इसका कारण यह था कि , सिक्के ,में कोई राजचिन्ह  नहीं था ।

अंत में सभी  तांवा के सिक्के को वापस लेना पड़ा जिस से सोना का सिक्के खाली हो गया और खजाना तांवे के सिक्के से भर गया ।

मुहम्मद बिन तुगलक  कि दूसरी योजना भी असफल रहा , उसने यह योजना बनाया कि अपनी राजधानी दिल्ली से बदल कर देवगिरि करना चाहता था , उसका नाम बदल कर

दोलताबाद  भी कर दिया गया । योजना उनकी सही थी  कि , देश कि सीमा के नजदीक राजधानी नहीं होना चाहिए , क्योंकि हमेशा आक्रमण का भय बना रहता है , उनसे गलती ये

हुई कि उसने राजधानी बदलने के लिए अपने दरवारी के साथ  प्रजा को भी दोलताबाद चलने का आदेश दे दिया । अधिक दूरी जाने के सटीकयोजना नहीं होने के कारण आधे  तो

रास्ते  में ही मर गए , वहाँ पहुँच कर राजा को मन  नहीं लगा , इसलिए वे पुनः दिल्ली वापस जाने का फरमान सुना दिया , कुछ तो वापस जाते समय रास्ते में ही मर गए । दिल्ली पहुँचने

पर दिल्ली उजाड़ हो गई । इस प्रकार यह योजना भी असफल हो गया । दक्षिण भारत केकई हिन्दू और जैन  मंदिरो को भी तोड़ा गया ।

मुहम्मद बिन तुगलक की तीसरी योजना भी असफल झो गया , उसने चीन के साथ युद्ध करने की योजना बनाई । उसने अपने सैनिक को चीन पर चड़ाई करने के लिए भेज  दिया

परंतु हिमालय की चड़ाई और ठंढ को उनके सैनिक बर्दाश्त नहीं कर पाये और अधिकांश तो वहीं मारे गए , चीनी सैनिकों  को तो एसी परिस्थिति में युद्ध करने के अभयस्थ थे । जो

सैनिक वापस आया उसे राजा ने मरवा दिया  । इस प्रकार उनकी तीसरी योजना भी असफल हो  गया ।

सन 1327  ई ॰ में मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ विद्रोह  शुरू हो गया , गुजरात  में दिल्ली के विद्रोहियों के पकड़ने के  दोरान सन 1351 ई॰ में मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु

हो गई ।

फिरोज शाह तुगलक (1351-1388 )-  फिरोज शाह तुगलक मुहम्मद शाह तुगलक के बाद सुल्तान बना । फिरोज शाह तुगलक मुहम्मद बिन तुगलक 

का चचेरा भाई था । फिरोज शाह तुगलक ने 1353 ई॰ में  बंगाल और सिंध पर आक्रमण किया परंतु असफल रहा । संसुद्दीन के पुत्र सिकंदर शाह पर भी आक्रमण किया परंतु वहाँ 

भी असफल रहा । सन 1360 ई॰  उड़ीसा के जाजनगर नामक स्थान पर आक्रमण किया और जीत लिया वहाँ जगन्नाथ मंदिर में तोड़-फोड़ किया । सन 1361 ई॰ में नगरकोटा पर 

आक्रमण कर दिया वहाँ से उसने कर वसूला ।

आर्थिक दृष्टि से उनका सुधार बहुत महत्वपूर्ण है इन्होने अपने राज्य में सभी कारों को हटा दिया सिर्फ चार कारों को ही वसूलने का आदेश दिया । लगान जिसे  जिसे जकात कहा

जाता था । जज़िया जेओ सिर्फ हिंदुओं से वसूला जाता था । युद्ध में लूट का माल जिसे खुम्स कहा जाता था । अंत में  जकात लिया जाता था जो की  देने योग्य हो वो अपनी आमदनी के

2 1/2 %  देना पडता था । आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगो को देने की अवश्यकता नहीं थी । इसने कई नहरों का भी निर्माण करवाया था ।

फिरोज शाह तुगलक ने कई नगर बसाया जैसे –   फीरोजाबाद  , फिरोज़पूर , जौनपूर , फतेहाबाद ।

फिरोज़शाह तुगलक इस्लाम पर आधारित कानून बनाया । तूगलक वंश का अंतिम शाशक सुल्तान महमूद तुगलक था । तैमूर  के आक्रमण के कारण पूरा समाज हतास हो गया ।

तैमूर का लुटपाट सान 1398 ई॰  तक चला ।

 

                                                                            सैयद वंश (1414-1421 )

खिज्र खान –  दिल्ली सल्तनत का इतिहास में सैयद वंश का स्थापना खिज्र  खान ने सन 1414 में  किए थे । सन  1413 ई ॰ में दिल्ली का शाशक

महमूद शाह तुगलक शाशक था , मुहमद शाह के मृत्यु के बाद  दिल्ली में असस्थिरता पैदा हो गई जिस का लाभ उठा कर खिज्र खान उस पर  आक्रमण कर

दिया ।  कुछ महीने बाद खिज्र खान दिल्ली पर  कब्जा कर लिया । खिज्र खान ने कभी  अपने को सुल्तान के रूप में घोषित  नहीं किया । 

मुबारक शाह –  खिज्र खान के मृत्यु के बाद मुबारक शाह राजा बना , मुबारक शाह ने अपने आप को सुल्तान के रूप में पेश किया । 

मुहमद शाह सुल्तान बना मुबारक शाह के मृत्यु के बाद । सैयद वंश सन 1421 ई॰  तक रहा ।

 

लोदी वंश(1451 -1526)

दिल्ली सल्तनत का इतिहास में

लोदी वंश –  लोदी वंश  दिल्ली सल्तनत का इतिहास में अंत में शाशन किया । लोदी वंश  का  संस्थापक बहलोल लोदी इसकाप्रथम शाशक था । 

बहलोल लोदी – दिल्ली सल्तनत का इतिहास में  बहलोल लोदी  लोदी वंश का प्रथम शाशक था ।  बहलोल लोदी का असली नाम अबू मुजफ्फर था जो , 19 अप्रैल  1451 ई ॰  में बहलोल लोदी के नाम से दिल्ली के गद्दी पर बैठा । लोदी वंश वर्तमान के  उत्तरपरदेश , आज का पूर्वी पश्चिमी पंजाब । राजस्थान का  कुछ भाग में फैला

हुआ था । बहलोल लोदी व्यवहार कुशल शाशक और बुद्धिमान शाशक था । बहलोल लोदी  की मृत्यु सन 1479 ई॰ में हो गई ।

सिकंदर लोदी दिल्ली सल्तनत का इतिहास में सिकंदर लोदी लोदी वंश का दूसरा शाशक  था । इन का बचपन का नाम निजाम खान था । सन 1479 ई ॰ गद्दी

पर बैठा । इसने बंगाल और ग्वालियर तक अपने राज्य का विस्तार किया ।  सिकंदर ने लूट के समान पर कर नहीं लेता था ।  जमीन में  गड़े  खजाना मिलने पर

उस पर भी कर नहीं लेता था । अनाज कपड़ा पर से चुंगी हटा दिया इस से ये समान सस्ता हो गया । सिकंदर ने आंतरिक व्यापार पर से कर हटा दिया । सिकंदर लोदी

मेवाड़  का राजा राणा सांगा का समकालीन था ।  सन 1517 ई॰  में इनकी मृत्यु हो गई ।

इब्राहिम लोदी – इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का इतिहास में  और लोदी वंश का अंतिम शाशक था । सन 1526 ई॰  में  अपने पिता  सिकंदर लोदी के मृत्यु 

के बाद इब्राहिम  लोदी शाशक बना । इब्राहिम लोदी एक योग्य शाशक  सिद्ध नहीं हुआ । उसने कई विद्रोह का सामना किया । उसने  कई बदलाव किए जिस से उसके

दरवारी गण उस से  नाराज हो गए  और उसके दरवारियों ने   बाबर को आक्रमण करने  के लिए आमंत्रित किया , पानीपत के प्रथम युद्ध सन 1526 ई॰ में  इब्राहिम लोदी

की मृत्यु हो गई ।  इसके साथ ही दिल्ली सल्तनत  और लोदी वंश का अंत हो गया ।  

 

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